कुछ लिखना है आज दिल निचौड़ के।कुछ तो छूटा है आज शायद वह भरम था मेरा।।
जो लगाव था शायद एकतरफ़ा था। दोस्ती दो हस्तियों की हमेशा नही होती यूँ लगावों की।।
बिना अल्फ़ाज़ काँच सा टूटा कुछ भीतर से। शायद वह वज़न था मेरा।।
सोचा था जैसे यहाँ खिंचाव है होगा वहाँ पर भी। कशिशें दोनो तरफ़ हो हमेशा जरूरी तो नही।
भीगा है बिना आँसू बहाये कुछ तो यहाँ पे।शायद वह दिल था मेरा।।
अब मिल गए होंगे उनको दोस्त हमसे बढ़कर । हुम यूँ उनकी आरज़ू रखे लाज़मी तो नही।।
सोच ये अवैजि बनना मंजूर नहीं हमें।शायद ये मरहम था मेरा।।
कुंतल भट्ट "कुल"