My Corona Virus Poem ..!!!
आज रिश्तों का आलम यह है,
हम ग़र उनका हाल भी पूछते हैं
तो उन्हें हमारी नई चाल लगती है..!!
हाथों को मिला कर गले लगाना
आज ख़्वाबों की बात लगती हैं..!!
नमस्ते की रस्म-ओ-रिवाजों में
भी आज शक़-ओ-सूबाँ की ही
कोई गहरी-सी साज़िश लगतीं है..!!
बलग़म खाँसी छींक भीड़ में खड़े
लोगों को तो कटार-सी लगती है ..!!
गलती से पृथक्करण पंजिका में हाँ
हो जाएँ तो मौतकी घड़ी लगती है..!!
आज अच्छे अच्छे जहाँ के शाहों की
शहंशाही लड़खड़ाती-सी लगती हैं ..!!
हवाई जहाज़ों के बग़ैर आसमानों में
परिंदों को मिली आज़ादी लगती हैं..!!
नास्तिकता के कट्टरपंथीओ की तो
प्रभु के दरबार में भीड़-सी लगती हैं ..!!
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