"नारी"
कुएं की चुप्पी सी
मौन रहती है नारी।
जिसके झरने को
सिर्फ पिया जाता है
दर्द के एहसास में
जिसे जिया जाता है
संगीत की तरह
जिसे सुना जाता हैं
खुश्बू के झोकों की तरह
महसूस किया जाता है।
कविता रूपी नारी में
बहते निरंतर झरने हैं
अलौकिकता के यथार्थ
शौन्दर्यता के आभास संग
किलकारते हैं पर्वत
कुंठित हरियाली में
धिरकते हैं निश दिन
अधरों में गीतों के क़दम।
उसकी रूह को टटोल कर
उसके अन्तर्मन के आसमान में
शब्दों की गठरी खोल कर
नारी के नारीत्व की कविता को
उसके दिल के कागज पर
बस यूँ ही लिखा जाता है
सिर्फ लिखा जाता है
शिव भरोस तिवारी 'हमदर्द'
जयंत, जिला-सिंगरौली (मध्य प्रदेश)
फ़ोन-7000466363