बेख़ौफ़ सी एक परवाज़
एक लड़की हूँ मैं
हज़ार बंधनों में जकड़ी हूँ मैं
तो क्या
हैं कुछ ख्वाहिशें भी मन में मेरे
सजाये हैं कुछ सपने भी नयनों ने मेरे
तोड़ कर बंधन ये सारे
उड़ना चाहे हवाओं संग
बावरा ये मन मेरा
नील गगन में बादलों की तरह
जो ना हो कोई चील
जो ना हो कोई बाज़
तो लेलूँ मैं भी
बेख़ौफ़ सी एक परवाज़
पंछियों की तरह
बनकर कोई खुशबूदार झोंका हवा का
चाहे मन मेरा महका दूं
घर आँगन अपना
किसी चमन की तरह
मिटा दूं हर अँधेरा और
कर दूं रोशन ये सारा जहाँ
फिर चाहे हो जाऊं ख़ुद फ़ना
एक शमा की तरह
©अंकिता भार्गव