🌹🌹 शूलशैया🌹🌹
शूल शैया पर लेटे भीष्म पितामह के इच्छा मृत्यु के वरदान को आज अभिशप्त साबित करता यह एक-एक पल एक -एक युग सा भीष्म पितामह को महसूस हो रहा था।
दर्द जिस्म के पोर - पोर से लहू बनकर सैलाब ला चुका था।
विडंबना यह कि मुख से आह भी निकालना स्वयं का तिरस्कार करने के समान था।
कांटों के बिछौने पर लेटी अपनी अधमरी लाश का बोझ उनके लिए असहनीय हो गया था।
कभी बंद तो ,कभी खुली आंखों से ,अतीत का एक एक दृश्य चलचित्र सा लहरा रहा था।
अपने कर्मों का लेखा जोखा उन्होंने स्वयं लिखा था मानो------
पर मेरे पापा अपने ऐसे कौन से कर्मों का फल भुगत रहे हैं, यह वह स्वयं तो क्या , उनसे जुड़ी हर जिंदगी अन्जान है।
हर पल हर घड़ी इंसानियत का मान रखता , यह देवता सा इंसान ,हर पल तैयार रहता हर किसी के आंसू पोंछने,और उनका दर्द स्वयं के सीने में भर के अकेले में उनके लिए रोता हुआ दिखता ।
खुद भूखा रहकर भूखे को भोजन कराता था, कंगाली की हालत में भी जरूरतमंदों को रुपयों से मदद करता।
सदा ईश्वर की आराधना मै लीन नतमस्तक हो जीवन जीता।
अपने परिवार का इकलौता रक्षक, दया, ममता त्याग का जीता जागता, अपने आचरण, सदाचार से, वाणी में सरस्वती का निवास, सौम्यता पोर-पोर में समाई ऐसा जीवन जीते आया था।।
पर प्रकृति का क्रूर प्रहार उनकी सच्चाई ,अच्छाई पर बहुत बुरी तरह हुआ।
अकस्मात हुए इस वार का सामना करना जितना उनके लिए मुश्किल था , उससे कहीं ज्यादा उनके परिवार में पत्नी, तीन बेटों और एक बेटी के लिए था।
आज मृत्यु शैया उनको शूल शैया से कम नहीं लग रही थी।
पल-पल स्वयं मृत्यु का इंतजार----------उफ-----
कितना भयानक, कितना दर्द, कितनी तड़प-----
हर पल ईश्वर से प्रार्थना करता की------
हे ईश्वर अब दे दो इस दर्द से निजात , अब नहीं सहा जा रहा है जिस्म से रिसता दर्द का सैलाब।
मुझे समा लो प्रभु अपने में ही जल्दी खत्म कर दो मेरी इहलीला।
पर जन्म मृत्यु इंसान के बस में नहीं है।
कोई तो है जो अदृश्य हो चला रहा है इस चक्र को, शायद उसे हमने भगवान ,ईश्वर ,परमात्मा का नाम दे दिया है।
खैर जो भी है पर मेरे पिता , जी हां मेरी जान से भी प्यारे ,मुझे जिंदगी सिखाते, जीने के संघर्ष को सिखलाते, मेरे हीरो ,मेरे आइडल ,मेरे दोस्त-----
मेरे सब कुछ खास सब कुछ बस मेरे पापा --- पापा --- पापा-----
गले को कैंसर ने अपने अधिकार में ले लिया था।
बहुत दिनों से खाने-पीने में तकलीफ हो रही थी, दर्द भी बहुत था।
शुरुआत में तो हर बीमार अपने फैमिली डॉक्टर के पास ही जाता है
छोटी बीमारी का जामा पहनाते शहर के बहुत से डॉक्टर से इलाज करवाया।
कोई कहता ----- सर्दी की वजह से टॉन्सिल बढ़ गए हैं, कोई कहता मामूली सी तकलीफ है इंफेक्शन है कुछ दिन में ठीक हो जाएगा।
बस सब अपना अपना उल्लू सीधा करने में एक इंसान की जिंदगी को दांव पर लगा देते है।
आखिर में निष्कर्ष निकला और वह भी की गले की स्वर नली में कैंसर है-------
शून्य के घेरे में जिंदगी सिमट गई----
पत्नी बच्चे सब टूट गए, प्यार, ममता, और दर्द का दरिया सबकी आंखों से बह निकला।
मेरी मां---------
वात्सल्य , ममता की जीती जागती इस दुनिया में हम सब के लिए ईश्वर का अवतार।
अकस्मात हुए इस ना मिटने वाले रोग पर भी पापा ने हंसकर कहा था कि सब ईश्वर की मर्जी है वह जो करता है उसमें ही सबका भला होता है मुझे कोई अफसोस नहीं है कि मुझे इस भयंकर बीमारी ने अपनी और जकड़ लिया है बस तुम सब की चिंता है तुम सब मेरे बगैर जीने की अभी से आदत डाल लो।
मां - पापा के प्रेम की मिसाले पूरा समाज देता है।
हर मिलने वाला उनके प्रेम भरे स्वभाव ,अपनेपन का दीवाना हो जाता था।
सफर शुरू हुआ मुंबई का , देश के सबसे बड़े हॉस्पिटल टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल का------
इंसानी हांड मांस का सामना उन तमाम मशीनों से जूझना जो सही मायने में शरीर राख करने में कहीं भी पीछे नहीं हटती।
असहनीय पीड़ा सहते पापा कभी जुबां से उफ़ भी ना करते।
क्योंकि उनका उफ़ करना उनके परिवार को तकलीफ दे जाता।।
ख़ामोशी से दर्द सहते------
आज पापा का ऑपरेशन मुंबई में करना तय हुआ।
कुछ महीनों के इलाज का नतीजा डॉक्टर ने सिर्फ ऑपरेशन बताया।
ऑपरेशन थिएटर में ले जाया गया---- करीब 1 घंटे के बाद बाद अंदर से डॉक्टर ने आकर बताया कि ऑपरेशन नामुमकिन है ,क्योंकि बीमारी गले से होते हुए पूरी छाती के नीचे और पीछे पीठ में भी फैल गई है।
इस खतरनाक परिस्थिति में ऑपरेशन संभव ही नहीं है।
पर यह लापरवाही डॉक्टरों के कारण हुई ,ऐसा परिवार के लोगों का मानना था क्योंकि पापा को लेकर बड़ा बेटा पूरे 2 महीने टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल के चक्कर लगाता रहा।
डॉक्टरों के अनुसार हॉस्पिटल में बेड खाली ना होने की वजह से आज नहीं कल ,कल नहीं परसों ऑपरेशन की डेट आगे बढ़ती जा रही थी इतने बड़े हॉस्पिटल में एक बेड का मिलना नामुमकिन हो रहा था।
हॉस्पिटल के मरीजों को देख कर कैंसर से जूझती उनकी जिंदगी किस प्रकार दर्द और तकलीफ में गुजर रही है देख पाना किसी के लिए भी संभव नहीं था।
मरीजों की तादाद इतनी ठीक के उनके लिए उचित रहने की व्यवस्था भी नहीं हो पा रही थी यहां तक कि पापा के लिए जमीन में अगर एक बेड डालकर ऑपरेशन के बाद रखा जा सके यह भी तय किया गया था पर जमीन पर भी एक बिस्तर डालकर मिलने की जगह नहीं मिल पा रही थी।
अब तो गिनती के दिन बचे हैं आप इन्हें घर ले जाएं,
गले में एक नली होल कर के फिट कर दी गई , जिससे सिर्फ लिक्विड जैसे---सूप, जूस, मूंग दाल का पानी आदि यह सब पेट भरने के लिए दिया जाता रहे।
और पेट में भी होल कर के एक नली सेट कर दी गई थी इस पेट मैं क्यों होल किया गया यह किसी की समझ में नहीं आया ना ही किसी के पास इतनी समझ थी कि डॉक्टर से पूछा जा सके के शरीर में दो-दो छेद करके इस प्रकार क्यों नलियां फिट करी हुई है।
घर आते ही -------- तबीयत देखने वालों का तांता लग गया।
देर रात तक यही क्रम चलता, पापा की उदारता ने सबको उनका चहिता बनाया था।
बस इसी कारण रात दिन देखने वालों की भीड़ लगी रहती।
समय-समय पर गले की नली से कभी सूप ,जूस ,पानी सभी प्रकार के लिक्विड दिए जाते थे।
पर----+-
गले की नली से जैसे डाला जाता, पेट की नली से सब बाहर आ जाता था।
और इस प्रकार नित्यक्रम से पेट की चमड़ी में जहां से सब पिलाया हुआ बाहर आता था वह पूरी जगह धीरे-धीरे जख्म का रूप लेने लगी।
बुरी तरह से छिल गया था पेट उस जगह से जहां से सब कुछ निकलता था।
जख्म रिसने लगे थे, लहू बहने लगा था।
हर थोड़ी देर में कपड़े से उस जगह को आहिस्ता आहिस्ता साफ करना और फिर उन कपड़ों को तुरंत गरम गरम डेटॉल के पानी में धोना।
उफ़ बयान के बाहर था सब कुछ और पापा-----
इस असहनीय दर्द को सह कर भी खामोश थे।
आवाज तो चली गई थी ,बोलना बंद हो गया था,कुछ कहना होता तो स्लेट में लड़खड़ाते हाथों से लिखते।
आज रात तबीयत बहुत ज्यादा खराब हो गई-----
ऐसा प्रतीत होने लगा कि बस अब अगले पल कुछ ऐसा होने वाला है ,जिसका कि यहां सभी लोगों को पता है , कि बस अब मौत आ घेरेगी और अंधकार छा जाएगा।
कुटुंब की बड़ी -बूढी पापा की काकी ने अचानक सब को आदेश दिया कि----
जल्दी से जमीन पर लिटा दो, गंगाजल दो, ब्रजभूमि का चरणामृत मुंह में दो----
उनके आदेशों का पालन किया गया--++
पापा को जमीन पर लिटा दिया गया----
मां जिसको की कुछ देर पहले सब के समझाने पर सोने को कहा गया था अभी नींद लगी ही थी कि----
अचानक घबरा कर दूसरे कमरे से बाहर आकर चिल्लाने लगी---
यह सब क्या कर रहे हो तुम लोग---?
नहीं - नहीं इनको कुछ नहीं हो सकता उठाओ इनको----
अरे इनको तो हमेशा बहुत ठंड लगती है क्यों जमीन पर सुला कर रखा है।
काकी ने मां को डांट कर समझाने का प्रयास किया----
कि अब इनके पास ज्यादा वक्त नहीं है अच्छा होगा जो यह अपनी देह धरती पर त्यागे, इसलिए जमीन पर ही रहने दो
और
काकी पापा के पास जोर-जोर से भगवान का नाम लेने लगी----
पापा को भी कहती रही बोलो बेटा बोलो श्री कृष्ण शरणम् मम् , श्री कृष्ण शरणम मम्-------- राम - राम, राम राम
साथ ही सब को भी भगवान का स्मरण करने को कहती रही।
यह क्रम निरंतर लगातार चार रातों तक चलता रहा।
रोज रात होते पापा की तबीयत बहुत बिगड़ जाती ,रोज रात उन्हें जमीन पर सुलाया जाता।
मुंह में गंगाजल ,चरणामृत और ढेर सारी तुलसी जो पहले से ही तोड़ कर रखी थी वह भी मुंह में दी जाती।
किसी पंडित के कहने पर कि यह अमावस्या के 3 दिन निकल जाए तो अच्छा है।
बस घर के मंदिर में एक अखंड ज्योत जला दो----
इस आज्ञा का भी पालन किया गया----
अमावस्या भी बीत गई पर शायद अभी और ज्यादा पापा की सांसे लिखी थी जीने की, साथ ही और ज्यादा दर्द, तकलीफ सहना लिखा था।
आज सुबह से पापा के चेहरे पर बहुत नूर नजर आ रहा था।
देखने वालों का तांता अब भी लगा हुआ था।
शहर के बाहर रहने वाले सभी करीबी रिश्तेदार भी आ चुके थे।
अखंड ज्योत को अभी जलाए रखा हुआ था ,तेल डाल - डाल कर उसकी जिंदगी बढ़ाई जा रही थी।
हमने कई बार जा जाकर उसकी मध्यम होती लौ को बढ़ाकर जीवनदान दिया था।
क्योंकि मन में एक भ्रम था कि दीपक जलते रहने से पापा की जिंदगी भी बनी रहेगी।
शाम का धुंधलका घिरने लगा था----
पापा के सबसे प्यारे दोस्त पापा का हाथ पकड़ कर बैठे बातें कर रहे थे----
पापा उनकी कहीं वो बातें जो बहुत पुरानी हो चुकी थी यारी, दोस्ती बड़े मस्ती भरे बिताए दिनों को सुनकर बात-बात पर मुस्कुरा देते थे।
और फिर लड़खड़ाते हाथों से स्लेट पर कुछ अपने मन की बातें भी लिख रहे थे-----
मां पास बैठी पापा का माथा सहला रही थी---
पूरा परिवार सब पापा को घेरे हुए था।
पापा को देख ऐसा लग रहा था कि पापा तो अब ठीक हो गए हैं।
2 महीने की मझंलें बेटे की बेटी को देखने के लिए पापा ने अपनी इच्छा इशारे से जाहिर की ---
इतने दिनों से इसलिए इस बच्ची को और बाकी दो बच्चों को अपने पास नहीं आने दिया था क्योंकि पेट का जख्म जब मैं बहुत फैल गया था और खुला होने के कारण डर था पापा को कि कहीं बच्चो को इन्फेक्शन ना हो जाए और हर किसी को अपने से पापा दूर रखते थे कि किसी को कुछ ना हो जाए।
पेट की सफाई का काम सबसे ज्यादा बड़े बेटे की पत्नी बहुत सेवीभाव, लगन और प्यार से करती थी।
जब पापा को इस बीमारी ने नहीं डसा था तब सारा दिन दोनों बेटों के बच्चों संग खेलकर पूरा घर परिवार सर पर उठा लेते थे,
और अब अपनी आंखों के तारों को अपने मन पर पत्थर रख कर दूर करवाया था ।
आज बच्चों को पास बुलाकर प्यार से सर पर हाथ फेरा मानो आशीर्वाद दे रहे हो। और अलविदा कह रहे हो।
शाम ने हल्की हल्की कालिमा का आवरण ओढना शुरू किया, पंछी कलरव करते अपने नीड की ओर उड़ चले थे।
रोज के बोझल वातावरण से आज के वातावरण में थोड़ी आद्रता और खुशबू सी थी।
वहां उपस्थित हर एक व्यक्ति आज पापा से अपने मन के उदगार व्यक्त कर रहा था-----
घड़ी की सुइया टिक टिक करती अपने गंतव्य पर चढ़ाई चढ़कर अपनी मंजिल तय करने की होड़ में लगी थी।
पर अचानक----
इस पल को वक्त अब घर में थम सा गया------
मां की चीख से सारा वातावरण कृंदित हो गया----
आज पहली बार मैंने शरीर से प्राण कैसे निकलते हैं------देखा
उफ़
कितनी शांति थी पूरे शरीर में और मुख मंडल मै ,आंखें कितनी खुश नजर आ रही थी , कितनी कोमलता से पापा के प्राण धीरे-धीरे उनकी देह
का साथ छोड़ते हुए खुली आंखों से बाहर निकल गये-----
देह के इस पिंजरे से फड़फड़ाते जख्मी पंछी को आज आजादी मिल गई थी।
मुस्कुराता मुख मंडल, अब भी मुस्कुरा रहा था।
अब देखो ना किसी को समझ ही नहीं आया कि कुछ देर में पापा की जिंदगी हम सबका साथ छोड़ देगी।
वह सब बड़े बुजुर्ग अब तक जिन्होंने ना जाने कितनी बार पापा की जीवित देह जमीन पर रखी थी ,पर अभी उनको भी धोखा हो गया।
उनको भी पता नहीं चल पाया कि
कुछ ही पल में पापा की देह शरीर त्यागने वाली है , घर में कोहराम मच गया ------ हौसला तोड़ता परिवार के सदस्यों का क्रंदन ---------- सब कुछ असहनिय तो था पर निर्धारित था ।
आनन-फानन बर्फ की पेटी आ गई,
तो मां चीख कर बोली------
क्योंकि रात को शवयात्रा, और दाह संस्कार करना शायद शास्त्रों में वर्जित है इसलिए सुबह है दाह संस्कार करना निश्चित हुआ था।
नहीं----नहीं इनको हमेशा बहुत ही ठंड लगती है इनको बर्फ पर मैं नहीं रखने दूंगी------मत रखो इनको जमीन पर इन्हें जरा सी भी ठंड में तुरंत ही सर्दी हो जाती है मैं हमेशा इनका बहुत इन सब बातों का ख्याल रखती हूं----
मां की बातें सब को और ज्यादा दर्द के गर्त में ले जा रही थी, परेशान कर रही थी,
चीखते रोते मां बेहोश हो गई किसी ने डॉक्टर बुलाने को कहा।
पूरी रात पापा बर्फ की शैया पर थे।
आज उनको शूल शैया से ,अपनी बहुत ही दर्द देती कैंसर की तकलीफ, परिवार को अपने दुख से दुखी होते देख , और अपने आपको स्वयं को पल-पल मरते देखती जिंदगी से मुक्ति मिल गई--------
पूरे 20 दिन तक यह नियति का चक्र पापा की जिंदगी के इर्द-गिर्द घूमता रहा।
20 दिन के इस चक्र ने ना जाने सब के कितने अरमानों को ,कितने सपनों को ,और सबसे ज्यादा पापा को जीने की तमन्ना के तहत पल पल खत्म होती जिंदगी के पल खत्म किए।
शूल सैया से मुक्ति मिल गई थी,
भीष्म पितामह की भान्ति कृष्ण ने मानो आज पापा का उद्धार किया।
डॉ प्रियंका सोनी" प्रीत"
जलगांव
मोबाइल----9765399969