कशमकश
कुछ ईस तरहा से हमने अपनो को ही ईतने झख़म दिए, कि अब खुद से नजरें ना मीले इस लिए सब आईने ही तोड़ दिए।
बेतकल्लुफ़ी हमारी थी जो बेवजह यूँ ही निकल लिए,
मंजिल ना दिखी मगर हमने अपने रास्ते ही मोड़ लिए।
कुछ दिल की बात कहनी थी जो दिल में ही दबा दिए,
फिर आँखो के किनारो को खारे आंसुओं से भर दिए।
ऐ इश्क ए दर्द सुन जरा, ना घूमा कर तू मरहम लिए,
तेरे दर्द से इतना प्यार हुआ कि अब ज़ख्म खुले छोड़ दिए।
तसव्वुर में मेरे हम ख्वाब यूँ ही बुन कर जी लिए,
कशमकश के इस भँवर में हम खुदबखुद ही डूब लिए।
आशका शुकल "टीनी"