My New Poem ......!!!!!
काश की कुछँ वक्त सिफँ
अपने हिसाब का होता
न बहार का इंतज़ार होता ना
ख़िज़ाँ से सरोकार होता
गुलशनों में फ़ुल ना मुरझाते
ना पतझड़ों का ख़ौफ़ होता
ख़ुदगर्ज़ इन्सान तो पहले अपने
मतलब का हर काम कर लेता
वक़्त से भी वक़्त के तक़ाज़े कर
अपने हिसाब में वक़्त मोड़ लेता
प्रभुजी भी दे-कर ढील आज़माते
उधार के मुकददर से बंदे को परखते
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