महक रहा है कुंज मेरा , अपितु संपन्न हुआ श्रम मेरा
दर्शनीय है इसकी चारु , कु दृष्टि डाले ना कोई नर-नारी ।
हर वक्त है इसको संभाल के रखना ,
इस के हर फूल को बिखरने से बचा के रखना ।
कष्ट के अबुंद आए ना इस पे
धूप ,छांव और वर्षा से इसक पोषण मैंने ही करना ।
लक्ष्य पूर्ण कर ,पुष्पाण्ड मिला है मेरे श्रम को ,
हर पुष्प खिल रहा है कुंभ का मेरा , आनंद विभोर हो गया कुंज मेरा ।।