तात्विक विचारधारा....." ऊँ" अक्षर यह उदगीथ हैं, इसकी उपासना करनी चाहिए।ऊँ ऐसा (उच्चारण करके यज्ञमे उद्गाता)उद्गान (उच्च स्वरसे सामगान)करता है।उन उच्च स्वरसे गाये जानेवाले स्वर को 'उदात्त' कहा जाता हैं। नीचैः वदति इति अनुदात्त । अर्थात् निम्न स्वरमें गाये जाने वाले स्वरको 'अनुदात्त'कहा जाता हैं।एवं मध्य स्वरमें गाये जानेवाला स्वर समाहार होता हैं।"गीता"