यह मौन
यह घनीभूत सौंदर्य से
परिपूर्ण मौन-
रुक गया है कहीं,
कहीं भूल गए हैं सब
ऊपर उठना,
भीतर उतरना !
मांद से चाँद तक
पहुँचा जा सकता है
स्वयं तक क्यों नहीं
रोकता है
एक अपरिभाषित संकोच
कभी तो निकलना ही होगा
इस अँधेरे से
बुद्धत्व की सम्भावना
सर्वव्याप्त है
खोजना होगा
पाना होगा - स्वयं को
बुद्ध होना आवश्यक है
अपरिहार्य भी
.....होना ही होता है
............होना ही होगा !
जागो...
मेरे मन अचेतन !!