फिर आया ऋतुराज है....
फिर आया ऋतुराज है , मधुप रहे हैं झूम ।
पुष्पों के मकरंद ने, खूब मचाई धूम ।।
हाथ जोड़ वंदन करें, सरस्वती का ध्यान ।
मनोकामना सिद्ध हो, हरती है अज्ञान ।।
ऋतु वसंत का आगमन, छाया है उल्लास।
हरित प्रकृति की गोद में, दूर हटें संत्रास ।।
पीताम्बर रंग छा गया, वसुधा बदले रूप।
पीली सरसों चूनरी, पहन चली है धूप।।
सूर्यमुखी का पुष्प अब , देता है संदेश ।
तेजस्वी तन मन रखें, तब बदले परिवेश।।
फागुन में होरी जले, जलते सभी मलाल ।
रंगों की बरसात में, माथे लगे गुलाल ।।
मधुमासी मौसम हुआ, मिलकर गाते फाग।
टिमकी संग मृदंग का, हुरियारों का राग।।
पिचकारी ले हाथ में, कृष्ण करें मनुहार।
राधा छुपती हो कहाँ, होली का त्योहार।।
ऋतु बसंत के द्वार पर, स्वागत करे पलास ।
लाल पुष्प अर्पण करे, चहुँ दिश है उल्हास ।।
मन विछोह में दहकता, ज्यों पलास का फूल ।
विरह वेदना में चुभे, दिल में बनकर शूल ।।
धीर-वीर रघुवीर हैं, सबके कृपा निधान ।
शरणागत जो भी हुआ,जीता सकल जहान ।।
राघव का मंदिर बने, अब कहता है देश ।
नवमी तिथि फिर आ रही, बदला है परिवेश ।।
मनोज कुमार शुक्ल " मनोज "