आज फ़िर अंधेरा है, दिल में एक उलझन है
जाना चाहता हूं कहीं सामने बंधन है
किसी की संगदिली का आलमे जमाना था
क्या खबर थी वो शमा थी मैं परवाना था
जला दिया उसने मुझको जलने की तड़पन है
आज फिर अंधेरा है दिल में एक उलझन है
वो ऐसे तो ना थे ऐसे क्यों हो गए
मरहम दिया करते थे ज़ख्म क्यों दे गए
हमारे दोस्त कहते हैं
तुम्हारी हसरतें बेमानी है
जिसे तुम चाहते हो वो किसी और की दीवानी है
सुन कर हमने कर डाली खोज
सोचा था निकलेगा कोई नतीज़ा
छान डाला खानदान, कॉलेज, डोमिनोज़ पिज़्ज़ा
लेकिन वो ना मिला जिसकी हमें तलाश थी
एक बार फिर जिन्दगी बोझिल थी हताश थी
पंडित जी कहते हैं लड़का बहुगुण संपन्न है
फिर भी आज अंधेरा है दिल में एक उलझन है