तू क्यूँ हो रही
वेआबरू, बेपर्दा, बेशर्म, ये बेहया
ना जाने किसके सामने
निकल देती तू बेलिवाज़
ये तिज़ारत का दौर हैं
जरा दो इन्हे तुम बता
भावनाओं का मोल नहीं
पे व्यापार इनका हो रहा
और बह रही तू इनके सामने
अश्क़ तू हैं ही क्या
रोक ले तू खुद को दहलीज़ पर ही
ना छु सके तुझे, कोई ना सके हाथ लगा
जरा सम्भालो खुद को
बेशकीमती मोती यूँ ना गवां
जब तू जरा जरा सी बात पर यूँ आती रहेगी
अपने क़ीमत को गवाती रहेगी
अपने स्वाभिमान को पर्वत सा बना
अनय बन, ज्वला भड़का
फिर देख तू, तेरी भी क़ीमत होगी क्या
ऐ अश्क़ तू मशाल बन, उज़ाला फैला...
Trisha R S.... ✍️