My New Poem...!!!
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*कागजी टुकड़े पैसे में बहुत गर्मी होती है साहब*
*सबसे पहले ये रिश्ते जला कर राख करते हैं *
*चंद जूठे टुकड़ों में आजकल ईमान बिकते है *
*भूख की अग्नि में भी सिक्के ही दम तोड़ते हैं *
* मासूम हुस्न के बाज़ार सजते कली मसलते है *
*और तो और जिस्म-औ-कोख़ भी बिकती है *
* दौलतकी चकाचौंधमें रिश्ते-नाते भी पनपते हैं *
*औलाद भी वक़्त आने पर पुश्तैनी मिलक़त बटोरता है *
*मंत्री-औ-संत्री बिकते बिकता तो यहाँ लहूँ भी है *
*किरदार बिकते बिकती जवानी पैसों से झुकता हर कोई है*
सौदा तो यहाँ प्रभुसे भी चादर नारियल चढ़ावे का होता हैं *
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