इंसान
केसे मरते मरते जीते है ये इंसान।
अपने साये से भी डरते है ये इंसान।
कुछ पानेकी ख्वाइश में दौड़ते रहेते है,
फिर सर के बल गिरते है ये इंसान।
मिले तो जूक जूक के करते है सलाम,
फिर पीछे से वार करते है ये इंसान।
मोम बनाया दुनिया में रोशनी के लिए,
पत्थर दिल अंधेरों में जीते है ये इंसान।
रिश्तों के तखदूस खुद बनाए है उसने,
रिश्तों को नापाक करते है ये इंसान।
जख्मभी,दर्दभी, प्यार और नफरत भी,
जो मतलब सा लगे वो देते है ये इंसान।
चुपके से लगादे किसी की जिंदगी में आग,
निकले धुआ तो आग से डरते है ये इंसान।
नकाब कितने हटाओगे उनके चहेरेसे,
हर पल एक नया चहेरा दिखाते है ये इंसान।
अनिल भट्ट