Hindi Quote in Poem by Manoj kumar shukla

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महंँगाई पर कुछ दोहे

टके सेर बिकता रहा, पहले कभी अनाज।
शिला लेख में है लिखा, कैसा था वह राज ।।

घोड़ा गाड़ी पैर से,नापा सकल जहान।
कार स्कूटर में रमा,भूल गया इन्सान।।

पीढ़ी दर पीढ़ी पड़ी, महंँगाई की मार।
वेतन कम मिलता रहा,मिलता रहा दुलार।।

पहले कम मिलता रहा, अब तो कई हजार।
अपने-अपने ढंग से, जीवन रहे गुजार।।

महंँगाई की बाढ़ से, सब तो हैं, बेहाल।
पूंँजीपति उपभोक्ता, की उतरी है खाल।।

क्रेडिट मिलता था नहीं, बाँध रहे अब किस्त।
सुख सुविधा भोगी बढ़े, पाकर अब हैं मस्त।।

पहले पैर पसार कर, सोता था भगवान ।
लम्बी चादर ओढ़कर,अब सोता इन्सान।।

मजदूरी भी है बढ़ी, भांँति-भांँति के काम।
अब कोई भूखा नहीं, राशन में है नाम ।।

तालमेल अब बन गया, उपभोक्ता सरकार ।
महंँगाई की मार से, रक्षा का आधार ।।

अपने-अपने ढंग से, जीवन जीते लोग ।
जीने के इस सफ़र में, मिल ही जाता भोग।।

जिसकी जितनी चाहना,बने जगत में खास।।
अपने पर फैलाइये, उड़ने को आकाश।।

महंँगा सब कुछ हो गया, रोटी वस्त्र मकान ।
कर्मठता से ही मिले, मानव को सम्मान।।

मनोज कुमार शुक्ल " मनोज "

Hindi Poem by Manoj kumar shukla : 111323723
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