मधुर मिलन
विरह की अग्नि में तड़प रही विरहन को
लौट प्रियतम ने आलिंगनबद्ध कर उर लगाया
तृप्त हुई आत्माएं, नैनों ने प्रेमरस छलकाया।
देख इस मधुर मिलन को चांदनी भी शरमाई
भोर की बेला में आती सूर्य किरणों को
हर्षित हृदय से मन की यह बात सुनाई।
सुन सखी! पूर्णिमा की धवल रात में
रासरंग बरसा चहुं ओर
प्रेम की इस पावन वर्षा में, मैं बावरी भी हुई सराबोर।।
सरोज ✍️