निस्वार्थ सेवा
मैंने सुबह सुबह मां के पास फोन मिलाया। दूसरी तरफ से आवाज आई-हैल्लो, कुण सै?
मैं- राम राम मां।
मां- राम राम, ठीक सो थम्म सारे!
मैं - हां मां, और आप?
मां- मैं भी ठीक सूं बेटी,काल तो ठंड मै सिर मै दर्द होग्या था।
मैं - के बात होगी ही।
मां- ठंड घणी सै नै!
मैं-फेर सर्दी सर्दी लेट उठ जाया करो।आपनै के ड्यूटी पै जाणो है! गऊशाळा कई दिन ना जाओ।
मां- ए बेटी ईब्ब सारी लुगाई टाळ करग्गी, कोय कोनी जावै, हाम्म दो -च्यार जणी जाया करां।हाम्म भी टाळ करदयांगे तो गा(गाय) ठंड मै गोबर मै ए बैठैगी। इंसान तो बोलके दुख कह देवैं।उन बेजुबानां का कुण सै?
मैं अब निरुत्तर थी।
एमके कागदाना
फतेहाबाद हरियाणा