"आज की सोच।"
सत्य सज्जनों की कैद में हैं,
दया बेबस हैं,
प्रेम के कई रूप हैं, इन्सानियत आंसु बहा रही हैं,
करूणा बुध्द के साथ गई हुई है,
भलाई भूली-बिसरी चीज हैं,
वफा ने रूप लिया हैं स्वार्थ का,
अहिंसा गांधी के साथ दफना दी गई हैं,
धैर्य का कोई ठीकाना नहीं है,
आदर्श राम के साथ स्वर्ग सिधार गये हैं,
समयने करवट बदली है,
कर्म मनकी पटरी पर चलते हैं,
फल न जाने कहाँ, कब,कैसे,
रूप में सामने आएगा ?
जब आएगा तब देखा जाएगा,
यहीं हैं"गीता"आज के मानव की सोच।