Hindi Quote in Poem by Manoj kumar shukla

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सूख गये नयनों के आँसू......(गीत)



सूख गये नयनों के आँसू, मन की धरती अब बंजर है।

मानवता के बीज खो गये, दिखता कैसा यह मंजर है।।



चेहरों पर अब पहिन मुखोटे, गली-गली में घूम रहे हैं।

चूर हुये अपनी मस्ती में, अपनी धुन में झूम रहे हैं।

धर्म धुरंधर कहलाते हैं, थामे हाथों में खंजर है।

सूख गये आँखों में आँसू......



कैसा यह तूफान छा रहा, चोतरफा यह शोर उठा है।

मारकाट आतंक का यारो, यह कैसा उन्माद उठा है।

मर्यादायें छूट गईं हैं, बैचेनी में वह अम्बर है।

सूख गये आँखों में आँसू......



नैतिकता की बातें भूले, छद्म वेष का चलन बढ़ा है।

द्वेष ईष्र्या और मक्कारी, देखो उनका वजन बढ़ा है।

भटके सभी राह से रहबर, उछल कूद करते बंदर हैं ।

सूख गये आँखों में आँसू......



धरती का शृंगार करें अब, माँ दर्पण में देख रही है।

हरियाली सब उजड़ गयी है,नदी सरोवर देख रही है।

सारे जग से कहती कबसे, कौन उढ़ायेगा चूनर है।

सूख गये आँखों में आँसू......



जल थल नभ में माँ की महिमा, सबकी वही सिकंदर है।

उसको नमन करो सब मिलकर, आता नहीं बवंडर है।

उसकी दया कृपा हो सब पर, वह तो बड़ा समुंदर है।

सूख गये आँखों में आँसू......



जन सैलाब है बढ़ता जाता, मौन खड़ा कबसे मंदिर है।

पूजा अर्चन और इबादत, यह तो सब जन्तर-मन्तर हैं,

मिलकर जीवन जीना सीखें, दानव मानव का अंतर है।

सूख गये आँखों में आँसू.......



मर्म धर्म का समझो भाई, जीवन धर्म बड़ा होता है।

इसके आगे सभी तुच्छ है, जीव धर्म ऊपर होता है।

जीवन है तो तन है जिन्दा,नहीं तो धरती के अंदर है।

सूख गये आँखों में आँसू......



मनोज कुमार शुक्ल ‘‘मनोज‘‘

Hindi Poem by Manoj kumar shukla : 111304979
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