मनभावन तेरा रूप है कान्हा
मेरा मन हुआ, तेरा दीवाना
चित मे बसा, तेरा रूप सुहाना
सजने संवरने को मन भाये
मैं निहारुं जो दर्पण,
कान्हा तुम ही नजर आये।
ये भ्रम है मेरा या
मेरी आँखो का दोष
जिधर देखूँ तुम ही तुम
सुबह-शाम नजर आये
मैं निहारुं जो दर्पण
कान्हा तुम ही नजर आये।
यशोदा के माखनचोर
राधा के चितचोर
गोपियो के सिरमौर
तुम ही तुम बसे हो चहूँओर
मैं निहारुं जो दर्पण
कान्हा तुम ही नजर आये।
रंग रूप तेरा सांवला
मेरा मन जिस पर बावला
राधा के तुम कृष्णमुरारी
गायों के रक्षक,तुम गिरधारी
मैं निहारुं जो दर्पण
कान्हा तुम ही नजर आये।