गीत
आधुनिकता से परे, कुछ मीत तुमको दे रहा हूँ।
मन के पृष्ठों पर लिखा ,इक गीत तुमको दे रहा हूँ।।
हृदय के पट खोल तुमने ,चक्षुओं से जो कहा था।
मेरे नयनों ने पढा़ सब, किंतु मैं बेवस रहा था।।
अब हृदय से हार कर मैं, जीत तुमको दे रहा हूँ।
मन के पृष्ठों पर लिखा इक ,गीत तुमको दे रहा हूँ।।
नेह का दीपक जला कर, जिंदगी के तम को हर दो।
मन की अभिलाषा तुम्हारी, प्रणय का अनुबंध कर दो।।
लो करो स्वीकार अपनी ,प्रीत तुमको दे रहा हूँ।।
मन के पृष्ठों पर लिखा इक ,गीत तुमको दे रहा हूँ।।
लग रही हो आज तुम ज्यों, वेदना सहती धरा हो।
मेघ से आशा लगाए ,सुलगती सी निर्झरा हो।।
बनके सावन की झड़ी मै ,शीत तुमको दे रहा हूँ।
मन के पृष्ठों पर लिखा इक गीत तुमको दे रहा हूँ।।
मन की आशाओं को जी लो, तोड़ कर तटबंध सारे।
आओ बन सरिता हृदय में, सिंधु भी तुमको पुकारे।।
विलग ना होंगे कभी, वह रीत तुमको दे रहा हूँ।
मन के पृष्ठों पर लिखा, इक गीत तुमको दे रहा हूँ।।
याचिका ये प्रणय की ,अबिलम्ब तुम स्वीकार कर लो।
तुम सुगंधित पुष्प बन ,इस मन भ्रमर से प्यार कर लो।।
आज रावत मैं मधुर ,संगीत तुमको दे रहा हूँ।।
मन के पृष्ठों पर लिखा ,इक गीत तुमको दे रहा हूँ।।
रचनाकार
भरत सिंह रावत
भोपाल
7999473420
9993685955