हृदय में है अंधकार
मुझमे है फैला विकार
मस्तक के प्रकाश से
देखू मैं बंद आंखों से
सूनना मुझे होगा
मेरा ही मौन स्पंदन
तब आलोकित होगी
मेरे अंतर्मन की आभा
बंद होठों की कहानी
स्वयं की आलोचना
जब मेरी ही अंगूली
मुझ पर पहले उठेगी
तब प्रकाशित होगा
अपना मेरा अन्तर्मन
यूँ होगा प्रभु से मेरा मिलन