-:राजनैतिक हलचल:-
वो अब वतन छोड़ के चला है।
अपनों साथ और माँ का दामन छोड़ के चला है।
कलतक कमल में सुकुन था।
आज कलाई बाँधकर घड़ी, अपना वक्त बदल ने चला है।
घड़ी तो हाथ में शोभा देती है।
बीना तीर की कमान लेके, वो किसपर निशान साधने चला है।
तयार रहना साथियों, कही वो अपनों का तो शिकार करने चला है?