संसार कहता रहा,
संसार के सारे कवि कहते रहे
" असभ्य है प्रेम..."
किंतु तुमने मुझे समझाया ,
" प्रेम को सभ्य होना चाहिए
इतना सभ्य , कि यदि इसे अधूरा छोड़ लौट जाने को कहा जाए , तो यह बिना पलकें भिगोए , बिना उलाहना दिए , बिना चीखे , मुस्कुराता हुआ लौट जाए.... "