अमावस के घोर तिमिर को,
अन्तर्मन के अहंकार को ।
मन के कुलषित अंधकार को मिटाने,
दीप जलाओ दीप जलाओ।
ऊँच नीच का भेद भुलाकर,
सबको अपने गले लगाकर।
ज्योति पर्व की इस पावन बेला पर,
दीप जलाओ दीप जलाओ।
स्वार्थ लोभ को छोड़कर,
चाहत के रंग घोलकर।
उम्मीदों को पंख लगाकर,
दीप जलाओ दीप जलाओ।
रावण प्रतीक विकार मिटाकर,
हृदयपुंज से आग लगाकर।
मर्यादा पुरषोतम को दिल मे बसाकर ,
दीप जलाओ दीप जलाओ।