क्यूँ तेरी दुनिया से मैं यूँ मजबूर चली
आना था तेरे पास औ तुझसे दूर चली।
प्यास थी मुझे तेरे अधरों की बेतहाशा
हाथ बढ़े तुझे छूने को कुछ इस तरहा
हाथ झटक के मेरी दुनिया क्यूँ विरान करी
मुझे आना था तेरे पास औ तुझसे दूर चली।
एक छण को मेरी कदर ना करी तूने
फिर मेरी धड़कनों को ताल क्यूँ दिए तूने
क्या करूँ रोका तो मैंने खुद को बहुत
पर तू था ही ऐसा के पीछे ही मरी चली
मुझे आना था तेरे पास औ तुझसे दूर चली।