चारों तरफ़ रंग बिखरे हैं देखो तो सतरंगी
वो अकेला चुपचाप देखे जाये बना अंतरंगी
नीला पीला लाल गुलाबी कुछ भी समझ न आये
इश्क में बन गया वो सूफ़ी पहन चोला नारंगी
एक झलक देखी जीवन की उस दिन जब धूप खिली थी
मुट्ठी में बंद कर किस्मत को तभी रात आ मिली थी
वो चुप था अब और जीवन जैसे
इश्क की सूनी गली थी
रोज़ उजाले तकते हैं उसको हर दिन शाम सबेरे
कलमा मुहब्बत का पढ़े वो सूफ़ी
उम्र सज़दे में गुजरे
रंग अब मुहब्बत उसकी, इश्क हुआ सूफ़ियाना
नाम यार का खुदा हुआ है दिल हुआ मस्त मलंगी
इश्क में बन गया वो सूफ़ी पहन चोला नारंगी