लुटाकर जिंदगी युही इन्तज़ार में ठहर गए ,
ना जाने लफ्ज के , कहर से,ही मर ही गए,
कहीं पर रूसवाई, कहीं आलम मनाही का,
मौन अपने आप में, यकीनन हम ठहर गए ।।
दस्तक देते रहे, अजनबी से दरवाजा पर भी,
खूब दरवाजे, खूलकर भी, बंद ही रह गए ।।
बड़ी मुश्किल से, मीले राहें कदम चलते चलते,
दोराहे पर खड़ा में, वोह इतमीनान छोड़ गए ।।
आनंद गजब है, बाजार ए इश्क, दुनिया दारी ,
हम सुकुन से लफ्ज़ को ,मौन करके छूट गए ।।
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