महोबत की राह से, कोई गुजरा ना होता,
दर्द ए ग़म एहसास ,कोई गुजरा ना होता;
कभी ज़ख्म भी , मीठा होता है गहराई में,
दिल दिवाना विश्वास,कोई गुजरा ना होता,
रुसवाई के सिलसिलेमें,दौर चले मनाही का,
कभी हंसते रोते खास , कोई गुजरा ना होता,
बेताबी दिल की धड़कन में, मजबूर होते हुए,
इन्तज़ार ए आलम श्वास,कोई गुजरा ना होता,
अजिब है दास्तान ए महोबत इस रूहानियत,
रुस ए मस्त फरिस्ता , आनंद गुजरा ना होता,
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