~~~~~~~*मेरी माँ*~~~~~~~~~~
रात भर जागकर वो मेरे लिए मधुर स्वर मे लोरी गाया करती थी,
मेरी खिलोने की मांग पर मेरी माँ थाली में चाँद लाया करती थी।
उसको देखकर में चुप हो जाता पता नही कौन सी माया करती थी,
मुझ को सुलाने के काम में ही वो अपनी पुरी रात जाया करती थी।
रोटी का टुकड़ा मुझे देकर खुद पानी व हवा खाया करती थी,
मेरे लिए खुद के सपने खोए पर रोज नए सपने लाया करती थी।
रो रहा हु आज में सोचता हूं मेरी माँ क्या क्या किया करती थी,
मेरे ही चहेरे पे खुशी देखकर उसमे अपना सारा जहाँ पाया करती थी।
-----दिप परमार