Hindi Quote in Microfiction by Prabodh Kumar Govil

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देश के कुछ नामचीन अख़बार आज अपने ही जाल में फंसे बैठे हैं। इन पर चंद कलमबाजों का कब्ज़ा है, जो कभी थोक के भाव लिखी अपनी ही चीज़ों को घुमा- फिरा कर अपनी तस्वीरों के साथ परोसते रहते हैं। नए पन के लिए विदेशी अख़बारों से गूगल ट्रांसलेशन के सहारे चीज़ें उड़ाई जा रही हैं जिसके लिए "लो पेड एप्रेंटिस" बैठे हैं। बिक्री के लिए साल भर घरेलू काम की चीजें गिफ्ट में बांटने की व्यवस्था है। पब्लिक सोचती है कि चलो गाड़ी के शीशे पौंछने के काम आता है, अलमारियों में बिछ जाता है, रोटी के कटोरदान में लग जाता है, साल भर गिफ्ट मिलते हैं, रद्दी में बिक जाता है पांच रुपए में क्या बुरा है। इनमें लिखने- छपने वाले सोच रहे हैं कि हम कालजयी हो गए। टिकिट मिल गया तो वोट भी मिल जाएगा।
पत्रकारिता के शिक्षक परेशान हैं कि साल भर पढ़ाएं तो क्या पढ़ाएं!

Hindi Microfiction by Prabodh Kumar Govil : 111258229
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