ऑनलाइन ज़िन्दगी भी क्या ज़िन्दगी है जो अपनो को अपनों से ही दूर कर रही है । जो बैठते थे साथ कभी , आज वो ऑनलाइन समय मांग रहे । पहले दुकानों से जाकर समान खरीदा जाता था , आज घर बैठे ही आ रहा । लोग पहले ताज़ी हवा खाने के लिए बाहर सैर को जाया करते थे , आज घर बैठे ही एसी की हवा खा रहे । कैसा ये समय है और कैसे यह लोग , जो अपने कि खातिर अपनो को खोते जा रहे ।