रात बादलों में से ज्यों चाँद की
चाँदनी बिखरती है।
छमा-छम वारिशों के बाद ज्यों
हरियाली निखरती है।
और गहन गाम्भीर्य के बाद
यूँ आपका मुस्कुराना...
मससूस होता है प्यासों के लिए
सहरा में भी, नदिया निकलती है।
समेटे मुझ जैसों को आँचल में अपने
आपकी ममता पिघलती है।
समझाइश आपकी भटके हुओं
की बुराई निगलती है।
गुजरती शाम को भी मैंने कई द़फा
रोशन होते हुए देखा।
आपके व्यक्तित्व से जो अनुपम
आभा निकलती है।।
मेरी आदरणीय गुरूओं को समर्पित
शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाए...
सीमा शिवहरे 'सुमन'