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विचार बदलते हैं भावनायें भी ! कभी श्रृंगार करके मचलती हैं एक नन्ही बालिका के मन की तरह एक युवती का नुपुर लेकर। कभी बीहड़ सी त्यागने को हो जाती आतुर। नही बदलता तो तु, तुझमे सम्मालित भावनायें। हर इच्छा तुझतक ही तुझपर ही स्थित होकर मिल जाना चाहती हैं अस्तित्व के विलय, अस्तित्व तक।। - Ruchi Dixit
उन शब्दों को समेट लेना ही बेहतर है जिनमें मन को सुकून बल न हो, लगे औपचारिक महत्वहीन समस्या का उनसे कोई हल न हो। - Ruchi Dixit
शान्त और अनुकूल परिस्थिति में उत्पन्न जीवित विचार प्रतिकूल परिस्थितियों मे उत्पन्न प्राण द्यूत विचार से हमे बचाने का प्रयास करते हैं। जरूरत है तो साहस के साथ उन विचारों को सम्मान देना।। - Ruchi Dixit
जो हुआ अच्छा हुआ । जो हो रहा है अच्छा हो रहा है। जो होगा अच्छा होगा । क्योंकि माता- पिता ( माँ जगदम्बा) कभी भी अपनी संतान के विरुद्ध कुछ नही करती। प्रतिकूल परिस्थितियों में स्वीकार करना कठिन है किन्तु इससे सरल जीवन मे कुछ नहीं है। - Ruchi Dixit
सब भार परमात्मा पर छोड़ कर मन हल्का कर जीवन जीना बेहतर है। हम मात्र शतरंज के मोहरे है खिलाड़ी के हाथ के। यदि बन जाये खिलाड़ी हम तब भी हमारी चाल यही होगी। फर्क इतना होगा हम मोहरे होकर भी खेल के आनन्दी होंगे। - Ruchi Dixit
मुझसे मेरी भावना कभी लिखी न गई मिले ही नही शब्द कोई बता न सकी । - Ruchi Dixit
जो लोग जवानी में माता पिता के कर्तव्यों को पारी बाँधकर रोटी पानी देने की बात किया करते थे। हक हिस्सा न मिलने पर गालियों की बरसात किया करते थे। वही अपने बुढ़ापे में अपने बच्चों को माता पिता भगवान है ऐसा समझाने का प्रयास करते हैं।। - Ruchi Dixit
दुःख का कारण? बुजुर्ग माता पिता अपनी संतान मे श्रेष्ठ मानव निर्माण न करके ईश्वरीय तत्व -व्यवहार की कल्पना, अपेक्षा रखते हैं। - Ruchi Dixit
सम्मान प्राप्ति के लिए दुनिया में पहले आना सर्टिफिकेट बनता गया स्वंय के आचार, व्यवहार, विचार और अनुकरण को तौला न गया। - Ruchi Dixit
बोकर फल कड़वे लगे कखाकर पल कड़वे लगे। भूल गये बीज जो रोपे तुमने , तुमने ही तो सँवारे बीज बनी पौध वृक्ष बन तुमको ललकारे। ताड़ हुआ वो छाँव न देता, जहर होकर मार ही देता। फल चाहन की इच्छा है तो वाही फल को बीज चुनो तुम। ,,, ।Parenting (लालन-पालन )- Ruchi Dixit
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