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आश्रय दिया है उकसाया है खुद को जब खुद से ज्यादा महत्वपूर्ण बनाया है। पराधीन कमजोर नही, बस प्रेम की परिपाटी को अपनाया है।। - Ruchi Dixit
न मैं समझा सकी न कोई समझ सका मुझे बनाने वाला ही जानता होगा। भ्रम भी बहुत है दुनिया में अपने पन के कल्पनाओं में सच सा स्वागत पाते हैं स्व कल्पना से बाहर, केवल सच है सच में कोई नही।। - Ruchi Dixit
कोई भी प्रश्न स्थाई नही होते बदल जाते स्वरूप अथवा उपयोगिता जानने की जुगनुओं की लौ से उत्तर स्वंय ही अस्पष्ट परछाई सहेजने लगते हैं। कुछ प्रश्न उत्तर की कपाट में बन्द जीवन की प्रतिक्रियाओं के छोर पर बैठकर बाट जोहते है स्पष्टता की।। - Ruchi Dixit
साथ नही है देह का मन का बुद्धि का और इनके आधीन कर्म और अकर्म का अगर सम्भल जाते मुझसे तो क्या इसलिए हूँ शरण में तुम्हारी हे माँ ❤ - Ruchi Dixit
मुझमें अपना कुछ नही न मति न गति न स्थिति थपेड़ों के बीच डगमगाती नाव की तरह मगर फिर भी हूँ तो मैं मेरे रचना रचनाकार की ही।। - Ruchi Dixit
कुछ बूँदे गिरि थी सूखने मत देना कभी उन्हें। है उस समय से इल्तजा जो टुकड़ो में मुझे मिला था कभी । - Ruchi Dixit
सबको एक दिन जाना है मगर वास्तव में कोई कहीं नहीं जाता सबकुछ वर्चुअल है। जैसे एक खिलाड़ी खुद का क्लोन बनाकर खुद ही गेम खेल रहा है। - Ruchi Dixit
क्या पाया था ? किसे खोने का डर है ? किस अधिकार की चिंता है? कैसी और क्यों शिकायत है? जूझती जिंदगी मे भी इतनी क्यो कवायत है - Ruchi Dixit
शिकायत और अधिकार में बदलते ध्यान को अब मुड़ना होगा ।। - Ruchi Dixit
तुम्हारी कृपा और करुणा ही विश्वास है , जो केवल आपकी कृपा और करुणा से ही प्राप्य है।। - Ruchi Dixit
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