कुछ इस तरह मिलता है जैसे कोई अजनबी
और मेरी इस हालत पे खाता तरस भी नहीं
जाने किस के रंग में खुद को है ढाले हुए
मेरे कितने ही राज़ है
खुद में संभाले हुए
पर इसके राज़ हैं मेरे लिए राज़ ही
कहीं ये तेरे दिल से तो
चुप चुप के मिलता नहीं
नहीं तो मेरे सीने से ये दिल निकलता नहीं