क्यूँ पराया अपना ही आंगन ?
क्यू फरक नही पड़ता कि क्या उसका मन है ?
बोली थी मेरे घर में तेरी किलकारी लायी थी मेरे जीवन में
प्यार की खुशहाली।
चलो जानलें बेटी क्या है..!!
बेटी लक्ष्मी का रूप है..!
आंगन की सुनहरी धूप है..!
पिता का मान है..!
पिता का सम्मान है..!
पिता की दुलारि है..!
बेटी बहुत प्यारी है..!
कभी एक माँ है तो कभी एक साथी..!
बेटियां ही घर को स्वर्ग है बनाती..!
पिता के साथ चले जो बेटी वह परछाईं है।।
लेकिन यह कहते हुए आँख मेरी भर आयी है..!
वोह अपनी है, फिर भी क्यों कहते है कि
बेटियां तो परायी है.!
बेटि क्यूँ परायी है ? बेटि क्यूँ परायी है ?
कहीं सुना हुआ लिखा है।।
THANKS.