एक ऐसा भी सिलसिला है तेरे मेरे दर्मिया जो कभी ख़त्म होता नहीं है । तू लाख छुपा ले प्यार अपना पर कभी - कभी दिख ही जाता है । हम कितना भी लड़ ले झगड ले पर दूरियां हमे कभी भी अलग होने नहीं देती । इसको ईश्वर का इशारा कहूं या कुछ और पर तुमको कभी भी नहीं दिखता जो भी है तेरे मेरे दरमिया । अब और इंतज़ार नहीं होता थक चुकी हूं , अपनी किस्मत में तेरा नाम ढूंढते ढूंढते । अब मैं आगे मुड़ चुकी हूं , पीछे नहीं देखना चाहती । जो भी है बस यही तक था , अब मैं तेरी यादों से अलग होना चाहती हूं ।