एक नारी की पीड़ा..
हर महीने दर्द सहकर
कोख को तैयार किया मैंने
पहले मिलन में ही दर्द
किसने सहा बोलो? मैंने
नौ महीने तकलीफ
हँस कर उठाई मैंने
प्रसव की हर पीड़ा को
झेला ममता की आस में मैंने
लम्हा-लम्हा हर दर्द स्वीकारा
फिर ज़माने ने क्यों
हमारे बच्चे को सिर्फ
तुम्हारा खून कहकर पुकारा।
क्या अस्तित्व है मेरा???