याद आती है बचपन की वो मीठी यादें
खुशियाँ लेकर आती थीं बूँदों की बरसातें
कागज़ की कस्ती और नादानी भरी बातें
कागज़ की कस्ती भला जाती कितनी दूर
बचपन की खुशियाँ हो जाती चकनाचूर
जो अब आती बारिश तो लाती संदेशा तेरा
तेरी यादों का खोल देती है पिटारा
ये बारिश की बूंदें हैं या हैं अंगार बिरह की
या हैं तेरी सखी सहेली या सौतन हैं मेरी जनम की
तू बोले कुछ ना बोले मैं चुप सी झुलसी जाती हूँ
क्या खता थी मेरी बेदर्दी क्यूँ मैं यूँ पछताती हूँ।।।