क्यो इतनी कन्फ्यूजन है , सब उथला पुथला है । जहा से देखो वही से जीवन बिखरा - बिखरा है । कुछ समझ नहीं आता जाना कहा है और करना क्या है ? । सब और भीड़ जमा है , कितने रास्ते कितने पर्वत पार करने है इस जीवन मै । सब एक के पीछे भाग रहे है , जैसे यह कोई आखरी रेस हो । करने को बहुत कुछ है यहां , पर अपनी क्षमताओं को परखना कोई नहीं चाहता । जो है जैसा है बस अपने लिए सही है , इस बैरंग सी दुनिया को अपने सपनों से कोई नहीं रंगना चाहता ।