आँखे तालाब नही फिर भी भर आती है,
इगो शरीर नही, फिर भी घायल हो जाता है,
दुश्मनी बीज नही ,फिर भी बोइ जाती है,
होठ कपडा नही, फिर भी सिल जाते है,
कुदरत पत्नी नही फिर भी रुठ जाती है,
बुद्वि लोहा नही, फिर भी जंग लग जाती है,
और
इन्सान मौसम नही, फिर भी बदल जाता है।