English Quote in Shayri by KUMARPALSINH RANA

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"पिता धर्मः पिता स्वर्गः पिता हि परमं तपः।
पितरि प्रीतिमापन्ने प्रीयन्ते सर्व देवताः।।"

..यदि माता दैहिक-साँसारिक यात्रा के आविर्भाव पर प्राण को चेतना प्रदान करती है तो उस प्राथमिक आविर्भाव हेतु जड़ स्वरूप को पोषित करने वाले पिता ही हैं। माँ यदि आँगन की पूज्य वृंदा हैं तो पिता उसी आँगन को संरक्षित करने और समृद्ध रखने वाले वट-वृक्ष हैं। दुनिया आज 'फ़ादर्स डे' मना रही है। यूँ तो सनातनी सभ्यता में माता-पिता का दर्जा ईश्वर से भी ऊँचा है! लेकिन सांस्कृतिक सहिष्णुता और हमारी समृद्ध सभ्यता में हर प्रकार के उत्सव हेतु स्थान है और पिता तो स्वयं में उत्सव हैं। अतः लौकिक-यात्रा के तमाम रास्तों पर अपने मज़बूत कंधों का सहारा देने और मनुष्यता का पाठ पढ़ाने वाले पिताजी को इस विशेष अवसर पर असंख्य प्रणाम! सृष्टि के तमाम सिंहासनों से उच्च आपका यह स्थान, अनवरत यूँ ही बना रहे! शत् शत् नमन। ? ??

English Shayri by KUMARPALSINH RANA : 111197356
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