बचपन में जहां चाहा हंस लेते थे,
जहां चाहा रो लेते थे...
पर अब मुस्कान को तमीज़ चाहिए
और आंसुओ को तन्हाई!
हम भी मुस्कुराते थे कभी बेपरवाह अंदाज़ से...
देखा है आज खुद को कुछ पुरानी तस्वीरों में!
चलो मुस्कुराने की वजह ढूंढते है...
ज़िन्दगी तुम हमें ढूंढो...हम तुम्हे ढ़ूँढ़ते हैं....!