व्यग्यं कविता:-मुरझाईं भारत की कलियाँ
भारत की बेटी चीख रही..
इसे कौन बचाने आये।
जागो भारत वासी जागो..
अनन्याय ही बढ़ता जाये।
नित नन्ही सी कलियों पर..
बेरहम प्रहार क्यों हाय।
तन संग मन भी होता घायल..
भेड़ियों को कौन समझाये।
निसहाय ,निःवस्त्र ,कंपित काया...
खुद को झाड़ियों में छिपाये।
वो सोच रही मेले तन से
कैसे प्राणों को छुड़ाये।
भारत की बेटी.......बढ़ता जाय।
बेशर्म ,निर्लज्ज गिध्द के समूह
धरती का बोझ बढ़ाये।
हर बेटी की अब पुकार है ये
इनको फाँसी हो जाये ।
इस कलयुग में द्रोपदी तुझको
कैसे घनश्याम बचायें।
तू चक्र उठा बनके सवला
दु:शासन - मुण्ड अलग हो जाए
भारत की .........बढ़ता जाय।
सीमा शिवहरे 'सुमन'