मेरा यह उपन्यास दो उम्रदराज सगी बहनों की बरसों बाद मुलाकात के दौरान पूरी रात हुई बातचीत पर आधारित है.
बड़ी बहन भावना में बह कर जो अनर्थ किए जीवन में वह बताने लगती है.
यह सोच कर कि बहन उसके साथ खड़ी होगी. दुनिया ने उसे धोखा ना दिया होता तो उससे एक बाद एक अनर्थ ना हुए होते.
लेकिन बहन की जो प्रतिक्रिया मिलनी शुरू हुई उससे वह हतप्रभ हो जाती है. सोचती शेष अनर्थ ना बताऊँ, लेकिन बहन विवश कर देती है तो उसने सबसे बड़ा अनर्थ बताने के लिए जो रास्ता चुना वह इतना हाहाकारी था कि छोटी बहन ने उसे उसके सबसे बड़े अनर्थ से भी बड़ा अनर्थ बताया.
इस उपन्यास की तुलना आलोचकों ने
अज्ञेय जी के उपन्यास"शेखर एक जीवनी " से की है.
इसे एक मनोवैज्ञानिक मनोविष्लेणात्मक उपन्यास कहा है.