Hindi Quote in Poem by Shirin Bhavsar

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*चीत्कार*
बंद दरवाजो के
पीछे से आती
सिसकियां
चीत्कार कर रही थी....

एक मासूम सी कली
क्यों आज फिर
कुचली जा रही थी....

दरवाजे से सटा
एक मजबूर साया बन वो
बेबसी पर अपनी
रो रही थी....

हक़ था जिसका
खुले आसमां पर
वह क्यों आज
सायो से भी
घबरा रही थी....

क्यों धकेलते हो
अंधेरो में मुझे
सवाल यह वो
कुछ अपनों से ही
पूछ रही थी....

अंधे गूंगो बहरो की
बस्ती में
न जाने किसे वो
मदद को अपनी
पुकार रही थी....

तार तार वजूद अपना
कुचले हुवे जज्बात
समेंट कर उन्हें वो
चाह कर भी
खड़ी नहीं हो पा रही थी....

लाशो में तब्दील
उस अंधियारे
शमशान में
अपनी ही लाश का
बोझ उठा रही थी....

एक मासूम सी कली
क्यों आज फ़िर
कुचली जा रही थी....

बंद दरवाजो के
पीछे से आती
सिसकियां
चीत्कार कर रही थी....

शिरीन भावसार
इंदौर (म. प्र.)

Hindi Poem by Shirin Bhavsar : 111169832
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