*रात*
यादे दर्द ज़ख्म पुराने
अधूरे खाबो की किरचने
बह जाता है बहुत कुछ
इस रात के अंधेरे में....
ये गहरी काली रातें
यू तो बहुत डराती हैं
पर सहला भी देती हैं
लेकर अपने आँचल में....
बेचैनी तड़प नाकामी
रिसते हुए ज़ख्मो को
मलहम लगा देती हैं
समेट कर अपनी बाहों में....
दुलारकर पुचकारकर
पोंछ कर आँसुओ को
नये सपने आँखों में सजाकर
सुला लेती है अपनी गोद में....
चाहत है रात से गहरी मेरी
समेंट कर यह खुद में मुझे
हर रोज नया कर देती हैं
सजा देती है फिर आसमां में....
शिरीन भावसार
इंदौर (मप्र)