कुदरत हमेशा समय की पक्की होती है इसलिए वह औरों को तकलीफ नहीं देती पर कुदरत का संतुलन बिगाड़ा जाता है इसलिए लगता है कि वह तकलीफ देती है पर दरअसल कुदरत तकलीफ नहीं देती जो बिगाड़ने वाले हैं वह अपने आप को ही तकलीफ देते हैं साथ ही कुदरत के संतुलन को बीगाडते है |
न सूरजने कभी कहा सेकंड भर देर से ऊगु क्या फर्क पड़ेगा ? ना पेड़ ने कभी कहा कि साल भर ठहर जा मेरा मूड नहीं |
यह तो मानव द्वारा प्रयोग किए गए, नए-नए शोध की गई इसलिए बिगड़ता चला गया वरना कुदरत तो आज भी समय की पक्की/पाबंद है ही |...ॐD