देना था अभिशाप अंधेरा
करनी यूं रुसवाई थी
अगर नहीं था मैं कुछ तेरा
क्यों दुनिया में लाई थी?
जान जाए जनता की चाहे
राजा जीवित रहे सदा
तेरी सोच यही थी तो क्यों
सांसों का स्वर मुझे दिया
राजा से जो तूने पाया
उतना तूने काम किया
फ़िर किस लालच में यूं तूने
मेरा तन बलिदान किया?
मैं तेरे ही मन का हिस्सा
तेरे ही तन का मैं भाग
बोल, लगा बैठी क्यों अपनी
बगिया में ही तू ये आग???